Atharva Vediyam Bhumi Suktam-अथर्ववेदीयं भूमिसूक्तम्
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शौनकीय अथर्ववेद के द्वादश कांड का प्रथम सूक्त वैदिक साहित्य में भुमिसुकत, पृथ्वीसूक्त या मातृभूमि की प्राथना के रूप में विख्यात है | इसमें पृथ्वी के विभिन्न पक्षों से सम्बद्ध ६ 3 मंत्र विविध चंदो में प्रस्तुत है | ये सभी मंत्र विभिन्न प्राणियों, वनस्पतियों तथा जीवन को सुखद बनाने वाले पदार्थो को धारण करने वाली पृथ्वी माता के प्रति हमारी कृतज्ञता प्रकट करते है | आधुनिक योग में पर्यावरणीय दृष्टी से इसका महत्व होने तथा अथर्ववेद के प्रतिनिधि सूक्त रहने के कारण इसका बहुत महत्व है | इस संस्करण में अथर्ववेद के महत्त्व तथा भुमिसुक्त पर विस्तृत भूमिका के साथ मंत्रो में समागत शब्दों के अर्थ, हिंदी - अंग्रेजी में अनुवाद, विशेष के अंतर्गत अतिरिक्त सूचना, मंत्रो की वर्णानुसार से सूची और शब्दकोश भी दिया गया है
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