भारतवर्षीय प्राचीन चरित्र कोश 2 भागो में (Prachin Charitra Kosh Set of 2 Vols.) आधुनिक युग वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित अनुसंधान और अनुशीलन का युग है; अतः ज्ञान का एक निश्चित युक्तिसंगत रूप ही आज हमें ग्राह्य है। शान की एक पूर्वज्ञात शृंखला से हम आज नवोपलब्ध ज्ञान की नवीन शृंखला को जोड़ते जाते हैं, और इस प्रकार सभ्यता के विकास के पथ पर हम आगे बढ़ते जाते हैं। प्राचीन ज्ञान का कितना अंश हमारे लिए ग्राह्य है, यह भी एक विचारणीय विषय है। फिर भी ज्ञान और बिद्या की अनेक शाखायें हैं, जिनकी सामग्री प्राचीन भारतीय साहित्य में भरी पड़ी है। परन्तु यह बात सर्वज्ञात नहीं है। अधिकांशतः तो लोग प्राचीन भारतीय ज्ञान की विविध शाखाओं से भी परिचित नहीं हैं। अतः अनेक प्रकार से उन्हें निश्चित, संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप में उपलब्ध कराना प्रत्येक भारतीय विद्वान् का कार्य है।
इस दिशा में अनेक संस्थाएँ एवं व्यक्तिगत रूप में अनेक विद्वान् कार्य कर रहे हैं। पूना नगर का ‘भारतीय चरित्रकोश मण्डल’ ऐसी ही संस्थाओं में से एक संस्था है, जो महामहोपाध्याय श्री. सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव की अध्यक्षता में कार्य कर रही है। इस संस्था को अन्य अनेक उत्कृष्ट विद्वानों का सहयोग एवं परामर्श भी प्राप्त है। ‘भारतीय चरित्रकोश मण्डल’ के द्वारा अभी तक मराठी में ‘प्राचीन चरित्रकोश, ‘मध्ययुगीन चरित्र कोश’ तथा ‘अर्वाचीन चरित्रकोश’ प्रकाशित हुए है। परन्तु ऐसे कार्य की अखिल भारतीय उपयोगिता को ध्यान में रख कर इस प्रकार के कोशों एवं और ग्रंथों को हिन्दी में भी प्रकाशित किया जाये, यह निर्णय किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ‘प्राचीन चरित्रकोश’ अपने संशोधित एवं परिवर्तित रूप में हिन्दी में प्रस्तुत है।
हिन्दी के कोश साहित्य के क्षेत्र में भी इधर कुछ वर्षों से महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है। इसके अन्तर्गत ‘विश्वकोश’ का संपादन प्रकाशन कार्य चल रहा है। इसके अतिरिक्त ‘साहित्यकोश,’ ‘साहित्यकारकोश,’ ‘पात्रकोश,’ ‘मानक शब्दकोश, ‘पारिभाषिक शब्दकोश’ आदि प्रणीत एवं प्रकाशित हुए हैं। अन्य अनेक शब्दकोशों का भी निर्माण हुआ है; फिर भी सांस्कृतिक एवं दार्शनिक ज्ञानकोश, एवं चरित्रकोश निर्माण के कार्य हिन्दीभाषी क्षेत्र में अभी नहीं हुए। इस प्रकार के कार्य यहाँ पूना नगर में मराठी में चल रहे हैं, और वे हिन्दी में रूपान्तरित होकर भी प्रकाशित होंगे। महामहोपाध्याय श्री. सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव-द्वारा संपादित, प्रस्तुत ‘प्राचीन चरित्रकोश’ द्वारा एक प्रकार से इस कार्य का श्रीगणेश हो रहा हैं।
जहाँ तक मुझे शात है, इस विषय को लेकर अब तक हिंदी में एक ही ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, वह है पंडित द्वारिकाप्रसाद शर्मा कृत ‘भारतीय चरिता म्बुधि’। यह बहुत पहले लखनऊ के नवलकिशोर प्रेस से प्रकाशित हुआ था, तथा अब वह अनुपलब्ध है। उस ग्रन्थ में विवरण थे, पर संदर्भ नहीं। परंतु प्रस्तुत ‘प्राचीन भारतीय चरित्रकोश’ तो १२०४ पृष्ठों का एक विशालकाय परिपूर्ण चरित्रकोश है। इस कोश की विशेषता इस बात में है कि, इसके अंतर्गत प्रत्येक चरित्र एवं चरित्रगत प्रसंगों के समस्त संदर्भ भी दिये गये हैं। इसके कारण यह कोश सामान्य सूचनात्मक कोश न रह कर एक विशिष्ट प्रामाणिक ज्ञानकोश बन गया है, जिसकी संदर्भ सामग्री अनुसंधित्यु विद्वानों के लिए उनके शोधकार्य के हेतु उपयोगी संदर्भ संकेत प्रस्तुत करती है। मेरा अपना विचार है कि, इस दृष्टि से यह कार्य अद्वितीय उपादेयता से युक्त है। इसके लिए हिंदी संसार शास्त्रीजी का बड़ा ऋणी रहेगा।
इस मंडल के अंतर्गत दूसरे अन्य कोश ग्रंथ भी हिंदी में शीघ्र ही प्रणीत एवं प्रकाशित होनेवाले हैं, जिनमें प्रमुख है:- ‘प्राचीन स्थलकोश’ तथा ‘प्राचीन ग्रंथकोश’। इन ग्रन्थों के प्रकाशित होने पर हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं इतिहास संबंधी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो सकेगा। अभी तक हम अपने प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति को विदेशी आँखों या चश्मे से देखते रहें है; परंतु इस प्रकार के प्रामाणिक एवं निश्चित सुचना देनेवाले ग्रन्थों से हम स्वयं उसके संबंध में अनेक उपयोगी सूचनायें प्राप्त कर सकेंगे। इन सुचनाओं तथा प्राचीन भारत की संस्कृति, साहित्य एवं इतिहास-संबंधी ज्ञान को व्यापक प्रसार देने के उद्देश्य से ही इन ग्रन्थों का प्रणयन तथा प्रकाशन किया