Bhavaprakashanam भावप्रकाशनम्
भावप्रकाश: पुस्तक में विषय सूचि अनुसार – संज्ञाध्याय, भावफलकथनाध्याय, तन्वादिभावविचाराध्याय, रव्यादिभावपदार्थकथनाध्याय, तन्वादिद्वादशभावविचाराध्याय, योगाध्याय, स्त्रीजातकाध्याय, दशाविचाराध्याय, दशाफलाध्याय, अन्तर्दशाफलाध्याय, प्रत्यंतर्दशाफलाध्याय, ग्रन्थकारपरिचयाध्याय के बारे में विस्तार रूप से बताया गया है, जोकि भावप्रकाश: पुस्तक के महत्वपूर्ण अंग है।
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book के लाभ:
- भावप्रकाश पुस्तक को पढ़ने से ज्योतिष के महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है।
- भावप्रकाश पुस्तक को पढ़कर आप ज्योतिष के महत्व को समझ सकते है।
- भावप्रकाश पुस्तक से आप अपने जीवन में होने वाली घटनाओं को जान सकते है।
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book का विवरण:
ज्योतिषशास्त्र के महत्व को संस्कृत वांगमय के प्राय: समस्त मान्य ग्रन्थों में दर्शाया गया है। त्रिस्कन्ध ज्योतिष का ‘होरास्कन्ध’ मानव जीवन से अधिक तादात्मयता के कारण लोक में सम्मानित और प्रचारित है। ज्योतिषशास्त्र का यही स्कन्ध प्राचीन काल से ही राज्याश्रय प्राप्त करके सम्वर्धित होता रहा है। फलस्वरूप समय समय पर लघु वृहत कलेवरों से युक्त फलित ग्रन्थों की रचना होती रही है। प्राचीन फलित ग्रन्थों में जैमिनी पराशरादि ऋषियों के मतों का सर्वाशत: आश्रय है। परन्तु पाश्चात्यों के ग्रन्थों में ऋषि मतों के साथ साथ अपने अनुभवों मतों को भी दैवज्ञों ने समायोजित किया है। फलितस्कन्ध में फलादेशार्थ द्वादश भावों का विचार किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक ‘भावप्रकाश’ में भी द्वादशभावों द्वारा ही जातक सम्बन्धि विचार किया गया है। यहाँ ‘भाव’ शब्द पर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है।
कुण्डली में गणित प्रक्रिया से द्वादश लग्न निकाला जाता है जिसे द्वादश भावसाधन भी कहा जाता है। द्वादशभाव के साथ साथ द्वादश सन्धि का भी साधन किया जाता है। यहाँ इस पर भी थोडा विचार आवश्यक है। क्षितिजवृत्त और अहोरात्रवृत्त के सम्पात को लग्न कहा जाता है क्षितिज वृत्त दो होते है – गर्भीय और पृष्ठीय । लग्न भी दो प्रकार के होते है – ‘भवृत्तीय’ और ‘भविम्बीय’ । पृष्ठीय क्षितिजवृत्त और अहोरात्रवृत्त का सम्पात भवृत्तीय लग्न होता है। इसमें सूर्य के क्रन्त्यंशानुसार के न्यूनाधिकार से दृगवृत्त में लग्न राशि का मान (30 अंश से) न्यूनाधिक होता रहता है। अत: यह अनार्ष मत का लग्न कहा जाता है।