Shree Baglatattva Prakasika-श्रीबगलातत्त्वप्रकाशिका
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जगत की उत्पत्ति के उपरान्त उसके संचालन में भगवान विष्णु स्वयं को असमर्थ अनुभूत कर रहे थे। ऐसे में उन्हें जगदम्बा भगवती श्री महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान हुआ। भगवती जगदम्बा हैं यह सोच कर वह भगवती की साधना में लीन हुए। पुत्रवत्सला भगवती श्रीनारायण की याचना सुन कर हरिद्रा सरोवर में वैष्णव तेज से समन्वित हो कर प्रकट हुईं और क्रीड़ा करने लगीं। भगवती की इस लीला से यह संसार स्थिर हो गया और भगवती का यही अवतार आज संपूर्ण जगत में भगवती श्री बगलामुखी के नाम से विख्यात है। आप स्वयं में ब्रह्मास्त्र हैं व आप ही वह हैं जो कि प्रज्ञा का कर्षण करती हैं। आपके मन्त्र में पृथ्वी बीज होने से आप राजसत्ता की भी देवी हैं और यह पुनः स्थापित करता है कि जगत के संचालन में आप ही मूल कारण हैं।
ऐसी भगवती वेद, उपनिषद्, पुराण, श्री देवी महात्म्य, तन्त्र व योग मार्गों में समभाव से पूजित हैं। इन समस्त शास्त्रों में भगवती के नाना रहस्य यत्र-तत्र व्याप्त हैं यह ग्रन्थ मूल रूप से उनके उन समस्त रहस्यों को साधकों तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास है। इसके साथ-साथ यह ग्रन्थ भगवती के मन्त्रों की दीक्षा, पुरश्चरण विधि, विभिन्न प्रकार की पूजा विधियों, स्तोत्रों व मन्त्रों से समन्वित है। ग्रन्थ के आरंभ में दिया गया उपोद्घात तन्त्र विषय से संबंधित नाना तथ्यों का प्रकाशन करता है व दशमहाविद्या साधना की भूमिका को तैयार करता है। ग्रन्थ के अन्त में विभिन्न परिशिष्ट दिए गए हैं जिनमें न्यास व मुद्रा आदि विषयों का समावेश है।
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